दांत के रोग, दांत दर्द, दांत के रोगों के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार, घरेलु नुस्खे

Teeth ayurveda care, दांत के रोग, दांत दर्द दांत के रोगों के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार, घरेलु नुस्खे (Ayurveda home remedies and gharelu nuskhe for dental problems )

दांत के रोग, दांत दर्द, दांत के रोगों के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार, घरेलु नुस्खे

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दांत के रोगों के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार, घरेलु नुस्खे (Ayurveda home remedies and gharelu nuskhe for dental problems )

दांतों के रोग दूर करने का कोई भी इलाज करने से पहले सफ़ेद चीनी का सेवन बंद कर, इसकी जगह मिश्री या गुड़ का प्रयोग शुरू कर देना चाहिए फिर निम्नलिखित किसी भी घरेलु नुस्खे का सेवन करना चाहिए.
(१) निम्बू के छिलके पर २ बून्द सरसों का तेल टपका कर दांत व् मसूड़ों पर घिसने से, दांत मज़बूत , साफ़ और चमकीले सफ़ेद बने रहते हैं तथा मसूड़े खूब मज़बूत होते हैं.
(२) लौंग के तेल में भिगोया हुआ रुई का फाहा या कपूर का टुकड़ा या घी में तली हुई हींग का टुकड़ा दाढ़ के नीचे दबाने से दर्द दूर होता है.
(३) सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलकर दांतों व् मसूड़ों पर लगाने से मुंह की दुर्गन्ध और मसूड़ों से खून आना बंद होता है , दांत मज़बूत होते हैं और पायरिया नष्ट हो जाता है.
(४) नीम के पत्तों की राख , कोयला और थोड़ा सा कपूर तीनों को कूट पीस कर महीन बारीक़ चूर्ण कर लें. रात को सोते समय इसे मसूड़ों पर लगा कर थोड़ी देर बाद कुल्ले कर के सोएं.
(५) तिल के तेल में , पिसा हुआ नमक मिला कर, अंगुली से रोज़ दांतों पर लगाने से दांत खट्टा हो जाने की तकलीफ दूर हो जाती है.

दांत निकलते वक़्त की समस्याएं (problems faced by children during dentition in hindi)
dentition ayurveda

छोटे बच्चों के दांत निकलना, एक सामान्य स्वाभाविक प्रक्रिया होती है परन्तु इस दौरान कई बच्चों को शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं. दन्तोद्भेदन (DENTITION ) अर्थात दांत निकलने की प्रक्रिया तथा इस दौरान होने वाले उपद्रवों से बचाव एवं उनका औषधीय उपचार सम्बन्धी उपयोगी विवरण , Biovatica .Com द्वारा इस आर्टिकल के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है.

किसी भी परिवार के लिए शिशु का जन्म सबसे सुखद घटना होती है क्यूंकि बढ़ते बच्चे की किलकारियां और हरकतें परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक विशेष आनंद की प्राप्ति कराती हैं. किन्तु शरीर के स्वाभाविक विकास की एक प्रक्रिया "दन्तोद्भेदन " (DENTITION ) अर्थात दांत निकलने की प्रक्रिया के दौरान जब वह अबोध बालक कष्टों में दिखाई देता है तो परिवार के हर सदस्य के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं. दांत निकलने के दौरान होने वाली समस्याओं के विषय में , माता-पिता को, पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक होता है क्यूंकि कई बार अति उत्तेजना में अनावश्यक औषधीय सेवन बच्चों को करा दिया जाता है तो कई बार आवश्यक औषधीय उपचार न देने और बच्चों की सही देखभाल न होने से सामान्य समस्या गंभीर रूप ले लेती है. सामान्यतः सभी बच्चों में जब दांत निकलने प्रारम्भ होते हैं तब उनमे असामान्य परिवर्तन होने से बच्चा बीमार दिखाई देता है. ऐसे समय में बच्चों की देखभाल, उनके पोषण, सावधानियां व् आवश्यक औषधीय उपचार सम्बन्धी उपयोगी विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.

सामान्यतः उम्र के छटवे-सातवे महीने से दांत निकलने की शुरुआत होती है . हालाँकि दांत गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के छह माह का हो जाने के बाद से ही मसूड़ों के अंदर बीज रूप में मौजूद रहते हैं लेकिन जन्म के बाद धीरे धीरे इनमे अस्थिनिर्माण (OSSIFICATION ) की प्रक्रिया शुरू होती है और शरीर का सबसे कठोर पदार्थ दंतवल्क (ENAMEL ) और दन्त मज्जा (DENTAL PULP ) विकसित होते हैं. इन दोनों का मसूड़ों से बाहर निकलना दांत निकलना या दन्तोद्भेदन (TEETHING ) कहलाता है. मनुष्यों में दांतों की कुल संख्या ३२ होती है. सोलह नीचे के जबड़े में और 16 ऊपर के जबड़े में होते हैं. इस तरह ऊपर नीचे के जबड़ों में यह बराबर संख्या और क्रम में होते हैं. शुरुआत में नीचे के जबड़े में सामने के दांत (MIDDLE INCISORS ) निकलते हैं फिर ऊपर के जबड़े में सामने के दांत निकलते हैं. दांत निकलना एक सतत किन्तु धीमी प्रक्रिया है जिससे धीरे धीरे सभी दांतों के निकलने का क्रम चलता रहता है जिसका अंत 17 से 21 वर्ष की उम्र तक आखरी दाड़ जिसे 'अक्कल दाड़ ' (WISDOM TOOTH ) भी कहते हैं के निकलने से होता है. हालांकि कई लोगों में ये आखरी दाड़ और अधिक आयु में निकलती है.

शुरुआत में निकलने वाले दांतों को सामान्य भाषा में "दूध के दांत" या अस्थाई दांत (Deciduous or temporary teeth ) कहते हैं क्यूंकि यह गिर जाते हैं. इनकी संख्या 20 होती है. प्रत्येक जबड़े के आधे भाग में २ इंसिज़ेर्स, १ केनाइन और २ मोलर्स होते हैं. यह सिद्धांत भी सर्वमान्य है की बच्चों के जन्म के बाद जितने माह बाद दूध के दांत मसूड़ों से बाहर निकलते हैं उतने ही वर्षों की उम्र के बाद वे गिर जाते हैं और उनकी जगह स्थाई दांत (permanent teeth ) निकल आते हैं. उदाहरण के लिए बालक के जन्म के आठ माह बाद पहला दांत निकले तो वह दांत आठवे वर्ष में टूटकर गिर जाता है और उसकी जगह स्थाई दांत निकल आता है. तो कुल ३२ दांतों की संख्या में, २० दांतों को द्विज या दो बार जन्म लेने वाले अस्थाई और शेष १२ दांतों को स्थाई दांत कहते हैं जो एक बार निकलने के बाद टूटते नहीं हैं. दांतों के गिरने का क्रम भी ६ से १२ वर्ष तक की अवस्था तक चलता रहता है.

दांतों के रंगरूप और आकार में प्रायः भिन्नता रहती है. कुछ बच्चों में दांत जल्दी निकलते हैं तो कुछ में देर से निकलते हैं. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में दांत जल्दी निकलते हैं. जिन दांतों में पूर्णता, सघनता, सफेदी, चमक, चिकनाई, मज़बूती, समरूपता होती है वे उत्तम श्रेणी के दांत कहलाते हैं. इसके विपरीत दांतों का कम होना या अधिक होना, एकदम सफ़ेद या काला होना, मसूड़ों में पास पास न होकर एक दूसरे से ऊपर निचे या आगे पीछे होना निम्न श्रेणी के दांतों के लक्षण होते हैं.

आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के अनुसार दन्त विकृति सम्बन्धी तथ्य यह है की कई बार दन्त नलिकाओं के जन्मजात नहीं बने होने से जन्म से ही दांतों की अनुपस्थिति होती है (ANODONTIA ) या कुछ ही दन्त नलिकाओं के बने होने से, सामान्य स्थान से हटकर, कुछ ही दांत निकलते हैं (पार्शियल ANODONTIA ). इसी प्रकार दांतों के क्रम में दन्त नलिकाएं सामान्य से अधिक हो तो अधिदान्त (SUPERNUMARY TEETH ) तथा जन्म से ही दांत उपस्थित ( NATAL TEETH ) जन्मजात दन्त कहलाते हैं. दांतों के रंगरूप की असमानता दंतवल्क (ENAMEL ) के विकास में बाह्य दूषित तत्वों के मिल जाने से होती है. रक्त की कमी के कारण भी दूध के दांत नीले या काले रंग के दीखते हैं. टेट्रासाक्लिं जैसी कई दवाइयों के दुष्प्रभाव से दांत का रंग भूरा या पीला होकर कुरूप हो सकता है. वैसे आहार में प्रोटीन, कैल्शियम , फास्फेट, विटामिन सी तथा डी की उचित मात्रा होना यानी उत्तम पोषण से अच्छे और स्वस्थ दांत की उत्पत्ति होती है तो कुपोषण से शरीर के साथ साथ दांत भी ख़राब हो जाते हैं.

दन्तोद्भेदगादान्तक ऱस (Dantodbhed gadantak rasa , Dantodbhed Gadantak Ras in hindi)

आयुर्वेद के ग्रंथों में भैषज्य रत्नावली का अति महत्वपूर्ण स्थान है. इस ग्रन्थ में वर्णित विभिन्न आयुर्वेदिक योग आज भी प्रचलित और प्रभावशील हैं. इसी ग्रन्थ में वर्णित एक योग - 'दन्तोद्भेदगतानतक ऱस', जो बच्चों के दांत निकलते समय होने वाली व्याधियों में अत्यंत लाभकारी है, का परिचय हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. इस औषधि का आज भी अनेक आयुर्वेदिक चिकित्सक सफल प्रयोग करते हैं. तो लीजिये, इस योग की निर्माण विधि और उपयोगिता सम्बन्धी विवरण प्रस्तुत है :-

दन्तोदभेद गदांतक रस के घटक द्रव्य (ingredients of Dantodbhed Gadantak ras ) :- पिप्पली (लेंडी पीपल ), पीपरामूल, चव्य, चित्रक, सौंठ, अजमोद, अजवाइन, हल्दी, मुलहठी, देवदारु, बायविडंग; बड़ी इलायची, नागकेशर, नागरमोथा, कपूर काचरी, काकड़सिंगी, विड़नमक, अभ्रक भस्म, शंख भस्म, लोह भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, - सभी १०-१० ग्राम.


दन्तोदभेद गदांतक रस निर्माण विधि (preparation method of Dantodbhed Gadantak ras ) - सभी जड़ी - बूटियों को कूट पीस कर बारीक कपड़छान चूर्ण कर लें. फिर इसमें सभी भस्में अच्छे से मिलाकर बकरी के दूध में अच्छे से घुटाई करें. जब गोली बनाने लायक हो जाए तो इसकी ३-३ रत्ती की गोलियां बना लें.

दन्तोदभेदगदांतक रस मात्रा और सेवन विधि (Dantodbhed Gadantak Ras quantity and dosage ) - इसकी गोलियों का पानी मसूड़ों पर मलें या १-१ गोली दिन में २ बार पानी या माता के दूध के साथ दें.

दन्तोदभेदगदांतक रस के लाभ ( advantages and health bennefits of Dantodbhed Gadantak Ras ) - इसके पानी को मसूड़ों पर मलने से या इसकी गोलियों का सेवन करने से दांत निकलते समय बच्चों को होने वाली व्याधियों में लाभ मिलता है तथा दांत शीघ्र ही बिना किसी कष्ट के निकल आते हैं. यह रस दांत निकलते समय बच्चों को होने वाली समस्याएँ जैसे ज्वर, सर्दी-खांसी , उलटी-दस्त , अपचन आदि में बहुत लाभ करता है. इसके सेवन से बच्चों की पाचन शक्ति मज़बूत होती है तथा अमाशय में उत्पन्न होने वाले रस (gastric juice ) का स्त्राव आदिक होता है जो बाहरी जीवाणुओं को नष्ट करने में सहयोगी होता है. दन्तोदभेदगदांतक रस बना बनाया इसी नाम से बाज़ार में मिलता है.