शिलाजीत की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में, Shilajit ayurveda uses in hindi.

शिलाजीत के आयुर्वेदिक उपयोग, शिवा गुटिका(Shiva Gutika ), शिलाप्रमेह वटी (Shilaprameh Vati ), मधुमेह नाशिनी गुटिका (madhumeh nashini Gutika ), वीर्य शोधन वटी

शिलाजीत की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में, Shilajit ayurveda uses in hindi.

शिलाजीत के आयुर्वेदिक उपयोग, शिवा गुटिका(Shiva Gutika ), शिलाप्रमेह वटी (Shilaprameh Vati ), मधुमेह नाशिनी गुटिका (madhumeh nashini Gutika ), वीर्य शोधन वटी

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शिलाजीत (Shilajit )

अद्भुत द्रव्य शिलाजीत
shilajit

Biovatica .Com के इस आर्टिकल में शरीर को बलपुष्टि प्रदान करने वाले तथा यौन स्वास्थ्य बनाने वाले एक बहुचर्चित किन्तु दुर्लभ द्रव्य "शिलाजीत" से सम्बंधित विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है. शिलाजीत को सामान्यतया यौन समस्याओं में उपयोगी औषधि के रूप में ही जाना और समझा जाता है जबकि यह एक ऐसा रसायन है जिसका सेवन रोगी ही नहीं बल्कि स्वस्थ व्यक्ति भी कर सकता है और अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाये रख सकता है.

आयुर्वेद के सभी ग्रंथों में "शिलाजीत" का बहुत गुणगान किया गया है. आयुर्वेद के अनेक महत्वपूर्ण योगों में "शिलाजीत" का प्रयोग किया जाता है क्यूंकि यह बलपुष्टिकारक, ओजवर्धक, दौर्बल्य नाशक , धातुपौष्टिक होने के साथ साथ कई प्रकार के जीर्ण रोगों को दूर करने वाले द्रव्य है. आयुर्वेद के अनुसार शिलाजीत सभी प्रकार की व्याधियों को नष्ट करने के लिए प्रसिद्द है. शिलाजीत की सबसे बड़ी विशेषता ये है की ये सिर्फ रोगग्रस्त का रोग दूर करने के लिए ही उपयोगी नहीं बल्कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी उपयोगी है यानि स्वस्थ व्यक्ति (स्त्री या पुरुष ) भी अपने स्वास्थ की रक्षा करने और शारीरिक पुष्टि को बनाये रखने के लिए इसका सेवन कर सकता है. इस प्रकार से ये भी सिद्ध होता है की शिलाजीत को यौन दौर्बल्य से पीड़ित विवाहित व्यक्ति ही नहीं अविवाहित युवक भी सेवन कर सकता है. आम व्यक्ति की धारणा में शिलाजीत एक यौन टॉनिक की तरह स्थापित है जबकि यह अन्य प्रकार के कई रोगों को दूर करने के साथ साथ शरीर बल, वर्ण और ओज प्रदान करने वाले एक जनरल टॉनिक भी है.

शिलाजीत शुद्ध और असली हो, साथ ही इसका सेवन उचित मात्रा में और विधि-विधान के अनुसार हो किया जाये तभी इसके अपेक्षित लाभ प्राप्त होते हैं. आयुर्वेद में वर्णित इस द्रव्य की प्रशंसा पढ़ कर किसी भी पाठक क्व मन में शिलाजीत के प्रति उत्सुकता और इसे सेवन कर लाभ उठाने की लालसा पैदा हो सकती है. इसलिए शिलाजीत का उपयोग करने सम्बन्धी यह स्पष्ट चेतावनी दे देना हम जरुरी समझते हैं की जब तक यह सिद्ध न हो जाये की जो शिलाजीत आप खरीद रहे हैं वह असली और शुद्ध है और उसमे किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं है तब तक उसका सेवन न करें वर्ना मनोवांछित लाभ न मिलने पर इस उपयोगी और अभूतपूर्व गुणों से युक्त द्रव्य को आप बेकार चीज समझने लगेंगे. वैसे शुद्ध शिलाजीत की जांच पड़ताल सम्बन्धी कुछ सामान्य उपाय यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं :-
* शिलाजीत के जरा से टुकड़े को कोयले के अंगारे पर डालने से धुआं न उठे और खूंटे की तरह खड़ा हो जाए तो वह शिलाजीत शुद्ध है.
* पानी में डालते ही वह तार तार होकर जल में बैठ जाए तो वह शुद्ध शिलाजीत है.
* सूख जाने पर उसमे गौमूत्र जैसी गंध आये, रंग कला और पतले गोंड के सामान हो, हल्का व् चिकना हो तो ऐसे शिलाजीत को शुद्ध और उत्तम समझें.

आइये अब शिलाजीत का परिचय, उसके प्रकार एवं गुण , उसकी शोधनविधि व् उपयोगिता सम्बन्धी विस्तृत चर्चा शुरू करते हैं.

शिलाजीत के विभिन्न भारतीय भाषाओँ में नाम :-

संस्कृत - शिलाजतु , गिरिज
हिंदी - शिलाजीत
मराठी - शिलाजीत
गुजराती - शिलाजीत
बांग्ला - शिलाजतु
तमिल - ुरग्यम
कन्नड़ - कुलबेचरु
तेलुगु - शिलाजतु
अरबी - हाज़र ुल्मुसा
इंग्लिश - Asphalt
लैटिन - Asphaltum Punjabinum .
शिलाजीत दरअसल पत्थर की शिलाओं से पैदा होता है इसीलिए इसको शिलाजीत कहा जाता है. तमाम आयुर्वेदाचार्य और आयुर्वेदिक ग्रन्थ इसे पर्वत की शिलाओं से उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ आधुनिक विद्वान इसे पार्थिव द्रव्य न मानकर पर्वतीय वनस्पतियों का निर्यास (Exudation ) मानते हैं यानि एक वेजिटेबल प्रोडक्ट मानते हैं. उनकी राय में चूँकि यह शिलाओं से बहता हुआ आता है इसलिए इसे शिलाजतु कहा गया है.आयुर्वेद की सुश्रुत संहिता के अनुसार जेष्ठ और आषाढ़ मास में सूर्य की तीव्र किरणों द्वारा तपे हुए पर्वत, लाख के समान रस बहते हैं यही रस शिलाजतु कहलाता है.

आयुर्वेद के चरक संहिता में भी कहा गया है - सुवर्ण आदि पर्वतीय धातुएं सूर्य के ताप से संतप्त होकर लाख के समान पिघली हुई , कोमल चिकनी मिटटी के समान स्वच्छ मल का स्त्राव (बहाव) करती है. इसे ही शिलाजीत कहते हैं.

आयुर्वेद में शिलाजीत के चार भेद बताये हैं - सुवर्ण, चांदी, ताम्बा और लोहा, इन चार धातुओं से उत्पन्न शिलाजीत क्रम से श्रेष्ठ होता है. आयुर्वेद की चरक संहिता में कहा गया है - सामान्यतः सभी प्रकार के शिलाजीत गौमूत्र जैसी गंध वाले होते हैं और वे सभी तरह के विकारों को दूर करने के लिए उपयुक्त होते हैं. रसायन की दृष्टि से प्रयोग करने के लिए लौह शिलाजतु सर्वोत्तम है.

शिलाजीत हिमालय पर्वत श्रृंखला के पर्वतीय पत्थर में होता है और भारत, पाकिस्तान, चीन के इन क्षेत्रों के पर्वतीय पत्थरों में कुछ प्रतिशत में रहता है. इसकी पर्याप्त मात्रा प्राप्त करने के लिए इसे इन पत्थरों से विशेष विधि द्वारा शोधन कर निकला जाता है.

शिलाजीत शोधन विधि - ५ किलो शिलाजीत के पथ्थरों को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ कर एक भगोने में ३०-४० लीटर गर्म पानी में गला दें. २-३ दिन तक गलाने के बाद उसमे गौमूत्र या त्रिफला क्वाथ (हरड़, बहेड़ा, आंवला ) अच्छे से मिला कर २४ घंटे भीगने दें. फिर इसे उबाल कर ऊपर-ऊपर का शिलाजीत युक्त साफ़ जल निथार लें. भगोने में जो शेष रह जाये उसमे भी गौमूत्र एवं गर्म पानी मिलाकर दूसरे दिन उसका पानी भी निथार लें. अब इस निथरे हुए जल को भट्टी पर चढ़ा कर अच्छी तरह उबालें. जब पूरा पानी उड़ जायेगा तब काले डामर के समान राबड़ी जैसा शिलाजीत निकलेगा जिसे किसी साफ़ पात्र में इकठ्ठा कर लें यही शुद्ध शिलाजीत है. इसे अग्नितापी शिलाजीत कहते हैं.

सूर्यतापी शिलाजीत प्राप्त करने के लिए उपरोक्त विधि से प्राप्त निथारे हुए जल को एक कलाई किये हुए पात्र में छान कर भर लें और उस पात्र को सूर्य की धूप में रखने से रोज शाम को या दूसरे दिन सुबह ऊपर के भाग में दूध की मलाई के समान शिलाजीत की मलाई आ जाती है उस मलाई को खुरच कर या कलछी से अलग बर्तन में निकाल कर सुखा लेने पर शुद्ध शिलाजीत प्राप्त होती है. शिलाजीत के पात्र, जिससे रोज मलाई उतरी जाती है उसमे मलाई आ रही हो और तेज धूप के कारण यदि जल सूख जाये या कम हो जाए तो आवश्यकता के अनुसार त्रिफला क्वाथ मिला लें. जब मलाई आना बंद हो जाए तो शेष कचरे को फेंक दें.

शिलाजीत के गुण (characteristics and qualities of shilajit )

शिलाजीत में स्नेह और लवण गुण होने से वातघ्न , रस गुण होने से पित्तघ्न , तीक्ष्ण गुण होने से श्लेष मघन और मेदोघ्न , चरपरी और तीक्ष्ण होने से दीपन, कड़वा रस होने से रक्त विकार नाशक, तथा चरपरा, तीक्ष्ण और उष्ण गुण होने से कृमिघ्न होती है. शिलाजीत स्निग्ध होने से पौष्टिक, बल्य, आयुवर्धक, वृष्य, विषनाशक, मंगल (रसायन) , और अमृतरूप (सत्ववर्धक ) गुणों की प्राप्ति कराने वाला होता है. शुद्ध शिलाजीत के सेवन से धातुक्षीणता और मूत्ररोग दूर होते हैं तथा स्मरणशक्ति बढ़ती है.

महर्षि आत्रेय के अनुसार शिलाजीत अनमल (खट्टी नहीं ) , कषाय रस प्रधान, विपाक में कटु, न अधिक उष्ण, न अधिक शीत अपितु समशीतोष्ण है. इसकी उत्पत्ति सोना से, चांदी से, ताम्बा से और कृष्ण लोह से होती है. विधिपूर्वक सेवन करने से यह वाजीकरण तथा रोगनाशक होता है. इस पृथ्वी पर ऐसा कोई रोग नहीं है जिसे उचित समय पर, उचित योगों के साथ विधिपूर्वक शिलाजीत का प्रयोग करके बलपूर्वक नष्ट न किया जा सके. स्वस्थ मनुष्य भी यदि शिलाजीत का विधिपूर्वक प्रयोग करता है तो उसे उत्तम बल प्राप्त होता है.

भगवान् धन्वन्तरि जी कहते हैं की सब प्रकार का शिलाजीत कड़वा, चरपरा, कुछ कषाय युक्त, सर (वात और मल प्रवर्तक या सर्वत्र पहुँच जाने वाला ) , विपाक में चरपरा, उष्णवीर्य, कफ और मेद का शोषण करने और मल का छेदन करने वाला है. शिलाजीत के सेवन से प्रमेह, कुष्ठ, अपस्मार, उन्माद, क्षय, शोथ, अर्श, विषम ज्वर आदि रोग थोड़े ही समय में दूर हो जाते हैं. यह बहुत काल से मूत्र में आने वाली शर्करा और पथरी का भेदन करके उसे बाहर निकाल देता है.

शिलाजीत की मात्रा और सेवन विधि (Shilajit quantity and dosage information )

शिलाजीत की २-२ गोली या शुद्ध शिलाजीत ४-४ रत्ती (५०० मिग्रा) सुबह शाम दूध के साथ लेना चाहिए. आयुर्वेद में जितना महत्त्व पथ्य और अपथ्य के पालन को दिया गया है उतना ही 'अनुपान के सेवन' को भी दिया गया है. शिलाजीत का विभिन्न रोगों में अलग-अलग अनुपान के साथ प्रयोग किया जाता है और रोगी को इसके सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होते है. कुछ महत्वपूर्ण रोगों में, शिलाजीत का सेवन करने में उपयोगी, अनुपानों की जानकारी प्रस्तुत की जा रही है:-

uses of Shilajit in different ailments are listed below :-

* ज्वर का शमन करने के लिए (Shilajit uses for fever treatment ) - नागर मोठा और पित्त पापड़ा के क्वाथ के साथ.
*मोटापा दूर करने के लिए (Shilajit uses for obesity treatment ) - एक गिलास पानी में २ चम्मच शहद घोल कर इसके साथ आधा ग्राम शुद्ध शिलाजीत या शिलाजीत की २ गोली लेना चाहिए. अधिक लाभ के लिए इसके साथ मेदोहर गुग्गुल की २-२ गोली भी ले सकते हैं.
* स्मरणशक्ति बढ़ने के लिए (Shilajit for increasing memory power ) - गाय के दूध के साथ.
* शोथ (सूजन) व् असाध्य रोगों के लिए - गौमूत्र के साथ.
* पथरी के लिए (for kidney stones ) - गोखरू काढ़े के साथ.
*धातुक्षीणता या शारीरिक कमजोरी के लिए (for erectile dysfunction or overall physical weakness ) - केशर और मिश्री मिले दूध के साथ.
* मूत्र रोग (urinary disorders ) - छोटी इलायची और पीपल का समभाग चूर्ण के साथ.
* मधुमेह (Shilajit use for diabetes treatment ) - सालसारदीगण के क्वाथ के साथ.
* प्रमेह के लिए (फॉर प्रमेह ) - समभाग बंग भस्म मिला कर दूध के साथ या शहद व् त्रिफला चूर्ण के साथ.

शिलाजीत से बनने वाले आयुर्वेदिक योग (Some Ayurveda remedies prepared with Shilajit ) :-

शिलाजीत से बने कुछ महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक योगों का परिचय तथा उनकी उपयोगिता सम्बन्धी विवरण यहाँ प्रस्तुत कर रहे है. ये योग बने बनाये बाज़ार में मिलते हैं.
१) शिलाजतु वटी - शुद्ध शिलाजीत, शुद्ध गूगल, लौह भस्म, बंग भस्म और स्वर्ण माक्षिक भस्म इस वटी के घटक द्रव्य हैं.
मात्रा (dosage ) - इसकी २-२ गोली सुबह शाम दूध के साथ ली जाती है.
उपयोग (health benefits ) - यह वटी वातज प्रमेह, शर्करामेह, इक्षुमेह तथा मधुमेह में अति लाभकारी है. जिन रोगियों में वात रोग के साथ प्रमेह भी हो उनके लिए यह उत्तम फलदायी है. जो पुरुष वीर्यविकार और यौन दौर्बल्य से ग्रस्त व् दुखी हैं वे इस वटी का सेवन, पूर्ण लाभ होने तक, निरंतर रूप से करें तो सब विकारों व् व्याधियों मुक्त होकर पूर्ण सक्षम और सशक्त हो सकते हैं.

(२) शिवा गुटिका(Shiva Gutika ) - शिलाजीत से बनने वाले इस महायोग में शिलाजीत के साथ विदारीकंद, बंसलोचन, दालचीनी, नागकेशर, शतावरी, क्षीरकाकोली , पुष्करमूल जैसे कई घटक द्रव्य और भावना द्रव्यों का उपयोग होता है.
शिवा गुटिका मात्रा और सेवन विधि (Quantity and dosage of shiva gutika ) - २-२ गोली सुबह-शाम दूध या शहद के साथ सेवन करें.
शिवा गुटिका के उपयोग (Advantages and health benefits of Shiva Gutika ) - इस महाऔषधि के सेवन से कई बीमारियां और कमजोरियां दूर हो जाती हैं. चूँकि शिवा गुटिका में शिलाजीत जैसा शक्तिशाली द्रव्य होता है अतः यह बलवीर्यवर्द्धक और यौनशक्तिवर्धक योग है. यह शुक्र में विद्यमान दूषित तत्वों का शोधन करती है, शरीर में बढ़ी हुई उष्णता का शमन कर स्तम्भन शक्ति बढाती है, शुक्र की क्षीणता और शिथिलता दूर करती है और यौन शक्ति बढ़ा कर नपुंसकता नष्ट करती है. शिवस गुटिका का निरंतर सेवन करने से शरीर हष्ट-पुष्ट होता है और चेहरा तेजस्वी होता है. यह मधुमेह , वात प्रकोप और वातजन्य रोगों तथा दर्द दूर करने वाली विश्वसनीय औषधि है.


(३) शिलाप्रमेह वटी (Shilaprameh Vati ) - इस योग के घटक द्रव्य हैं - शुद्ध शिलाजीत मधुमेह दमन चूर्ण, प्रमेह गज केसरी, गिलोय सत्व, आमलकी रसायन और तेजपान.
शिलाप्रमेह वटी मात्रा (Shilaprameh vati Quantity and dosage ) - २-२ गोली दूध या पानी के साथ भोजन के आधा घंटा पहले.
शिलाप्रमेह वटी के उपयोग (Advantages and health benefits of Shilaprameh vati ) - शिलाप्रमेह वटी के सेवन से मधुमेह रोग के कारण उत्पन्न हुई और बढ़ी हुई शर्करा नियंत्रण हो जाता है भले ही भले ही शर्करा केवल रक्त में बढ़ी हुई हो व मूत्र में भी आती हो. इस योग में शिलाजीत होने से मधुमेह, प्रमेह आदि के साथ-साथ धातु दौर्बल्य, मधुमेहजन्य नपुंसकता तथा अन्य यौन रोग भी इसके सेवन से नष्ट होते हैं.

(४) मधुमेह नाशिनी गुटिका (madhumeh nashini Gutika ) - शुद्ध शिलाजीत, त्रिवंगभस्म, गुड़मार, नीम की पत्तियां इसके घटक द्रव्य हैं.
मात्रा - २-२ गोली सुबह शाम दूध के साथ.
उपयोग - मधुमेह नाशिनी गुटिका रक्त में बढ़ने वाली और पेशाब में जाने वाली शर्करा को नियंत्रित करने वाली औषधि है. यह मधुमेह पर नियंत्रण के साथ साथ इस रोग से उत्पन्न शारीरिक और मानसिक कमजोरी , नपुंसकता आदि उपद्रवों को भी दूर करती है.

(५) वीर्य शोधन वटी - इसके घटक द्रव्य हैं शुद्ध शिलाजीत , रोप्यभास्म (चांदी भस्म ), बंग भस्म, प्रवाल पिष्टी , गिलोय सत्व, भीमसेनी कपूर.
मात्रा - १ से २ गोली सुबह शाम दूध के साथ.
उपयोग - वीर्यशोधन वटी शुक्र को शुद्ध करके उसमे मौजूद दूषित तत्वों को नष्ट करती है. उष्णता कम करके स्तम्भन शक्ति बढाती है और शिथिलता को दूर करती है.

अपथ्य - शिलाजीत एक लाभकारी पोषक द्रव्य है पर कुछ स्थितियों में इसका सेवन वर्जित भी है. शिलाजीत का सेवन पित्तप्रधान प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए. पित्त प्रकोप हो, आँखों में लाली रहती हो, जलन होती हो, और शरीर में गर्मी बढ़ी हुई हो ऐसी स्थिति में भी शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए. इसी तरह शिलाजीत का सेवन करते हुए लाल मिर्च, जलन करने वाले उष्ण प्रकृति के पदार्थ, भारी गरिष्ठ पदार्थ, तेज़ मिर्च मसाले, शराब, अंडे , मांस , मछली , तेल गुड़ , खटाई , अति धूप अति गर्मी आदि का त्याग रखना चाहिए.