Sanjivani Vati uses in hindi, संजीवनी वटी के फायदे और बनाने की विधि

संजीवनी वटी के फायदे, घटक द्रव्य, निर्माण विधि, मात्रा और सेवन विधि.

Sanjivani Vati uses in hindi, संजीवनी वटी के फायदे और बनाने की विधि

संजीवनी वटी के फायदे, घटक द्रव्य, निर्माण विधि, मात्रा और सेवन विधि.

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संजीवनी वटी (sanjivani vati )

संजीवनी वटी (sanjivani vati )
sanjivani vati

आयुर्वेद में एक से बढ़कर एक गुणकारी योग भरे पड़े हैं जिनमे कई योग ऐसे भी हैं जो दिखने में साधारण और छोटे दिखाई देते हैं पर असर करने के मामले में बड़े बड़े योगों से टक्कर लेते हैं यानी बड़े योगों के मुकाबले ही लाभ करते हैं ऐसा ही एक श्रेष्ठ योग है संजीवनी वटी जिसका परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :-

संजीवनी वटी के घटक द्रव्य (ingredients of sanjivani vati ) - वायविडंग, सौंठ, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, बच , ताज़ी गिलोय, शुद्ध भीलांवा और शुद्ध बच्छनाभ - इन १० द्रव्यों को सामान मात्रा में मिला लें.

संजीवनी वटी निर्माण विधि ( sanjivani vati preparation method ) - पहले बच्छनाभ, भीलांवा और गिलोय कूट पीस कर मिला लें फिर शेष द्रव्यों को कूट पीस कर छान कर महीन चूर्ण कर लें फिर सब द्रव्यों को मिलाकर , गोमूत्र के साथ १२ घंटे घुटाई करें. इसके बाद एक एक रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सूखा लें.

संजीवनी वटी मात्रा और सेवन विधि (sanjivani vati quantity and dosage ) - दिन में ३ या ४ बार २-२ गोली ठन्डे पानी के साथ सेवन करें . बालको को आधी-आधी गोली दें.

संजीवनी वटी के लाभ, फायदे व् उपयोग (Advantages and health benefits of sanjivani vati ) - संजीवनी वटी मुख्य रूप से ज्वर, अजीर्ण, कृमि, उलटी, उदर शूल, कफयुक्त खांसी, हैजा, सर्पदंश और सन्निपात आदि रोगों को दूर करती है . इसके सेवन से पसीना निकलता है जिससे शरीर में बढ़ा हुआ दोष निकल जाता है , मूत्र मार्ग से भी निकलता है. साथ ही अजीर्ण, जुकाम, और आम ज्वर आदि रोग दूर होते हैं. सर्प का विष उतारने में भी यह वटी अच्छा काम करती है. इसके सेवन से सर्दी जुकाम, और कफयुक्त गीली खांसी में आराम होता है. साधारण द्रव्यों से बानी यह वटी दिव्य सिद्ध हुई है इसलिए आयुर्वेद ने इसे "संजीवनी वटी" नाम दिया है.