Maha Triphaladi Ghrit, महात्रिफलादि घृत

Maha Triphaladi Ghrit uses in hindi, महात्रिफलादि घृत के फायदे और बनाने की विधि

Maha Triphaladi Ghrit, महात्रिफलादि घृत

Maha Triphaladi Ghrit uses in hindi, महात्रिफलादि घृत के फायदे और बनाने की विधि

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महा त्रिफ़लादि घृत ( Maha Triphaladi Ghrit )

महात्रिफलादि घृत
महा त्रिफ़लादि घृत ( Maha Triphaladi Ghrit )

त्रिफला कहते हैं - हरड़, बहेड़ा और आंवला को. आयुर्वेद ने इस योग का बहुत गुणगान किया है और इससे प्राप्त होने वाले अनेक लाभों का वर्णन किया है. इस त्रिफला के साथ अन्य गुणकारी काष्ठौषधियाँ मिला कर बनाया गया "महात्रिफलादि घृत ' बहुत ही गुणकारी होता है. विशेष कर नेत्र ज्योति, दिमागी ताकत एवं उदर शुद्धि के लिए ये योग बहुत ही लाभकारी होता है. इसके घटक द्रव्यों में से एक भांगरे का रस भी है इसलिए हम इस योग का परिचय आपसे करवा रहे हैं. महा त्रिफ़लादि घृत इसी नाम से बना बनाया बाज़ार में मिलता है.

महात्रिफलादि घृत के घटक द्रव्य (ingredients ऑफ़ maha trifaladi ghrita ) - त्रिफला चूर्ण ५०० ग्राम तथा भांगरा, अडूसा, आंवला, शतावर, गिलोय - इन पाँचों का रस आधा-आधा लीटर , घी आधा किलो.. पीपल, मिश्री, मनुक्का, त्रिफला, नीलोफर (नील कमल ), मुलहठी, क्षीरकाकोली, गुडुची और ककेरी, - सब समान वज़न में और कुल मिलकर १२५ ग्राम , आवश्यक मात्रा में पानी.

महात्रिफलादि घृत निर्माण विधि (preparation method of mahatrifaladi ghrita ) - पहले त्रिफला का काढ़ा तैयार करने के लिए चार लीटर पानी में त्रिफला डाल कर उबालें और जब पानी आधा लीटर बचे तब उतार कर छान लें. सभी ९ दवाओं का कल्क बनाकर त्रिफला काढ़े में डाल दें और सभी पाँचों रस, बकरी का दूध और घी भी डाल कर आग पर रख दें. जब सब जलीयांश जल जाए और सिर्फ घी रह जाए तब उतार कर छान लें और खुले मुंह के जार (बरनी) में भर कर रखें.

महात्रिफलादि घृत मात्रा और सेवन विधि ( quantity and dosage of mahatrifaladi ghrita ) - ५ ग्राम (एक छोटा चम्मच ) से १० ग्राम सुबह शाम बराबर मिश्री मिला कर दूध के साथ सेवन करें.

महात्रिफलादि घृत के लाभ (advantages and health benefits of mahatrifaladi ghrita ) - नेत्रों के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी औषधि है. इस घृत के सेवन से नेत्र ज्योति बढ़ती है, रतौंधी दूर होती है, दूर या पास की कमजोर दृष्टि में लाभ होता है, इस घृत का आँख में अंजन करने से और इसके साथ सप्तामृत लौह तथा उजाला वटी की १-१ गोली का सेवन करने से नेत्र रोगों में और अधिक लाभ होता है. लगातार ५-६ माह सेवन करने से चश्मे का नंबर कम होता है. आँखों का दुखना, लाल होना, तथा अन्य सभी नेत्र रोगों में यह घृत लाभ करता है. इसके सेवन से पेट साफ़ रहता है और शरीर की कमज़ोरी दूर होती है.