Ayurveda overview of Madhumeh (Diabetes) in hindi, आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह की सम्पूर्ण जानकारी

मधुमेह के कारण, मधुमेह के लक्षण, मधुमेह के आयुर्वेदिक इलाज, मधुमेह में आहार-विहार,आयुर्वेदिक इलाज, मधुमेह में परहेज.

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Madhumeh, मधुमेह

आज के दौर का महारोग मधुमेह (Madhumeh )
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मधुमेह स्वयं ही एक घातक रोग नहीं है वरन कई असाध्य रोगों का जन्मदाता भी है. आज पूरे विश्व ही नहीं बल्कि हमारे देश में भी मधुमेह के रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. मधुमेह रोग के प्रति जागरूकता का होना आज की सबसे बड़ी जरुरत है क्यूंकि मधुमेह रोग से बचना या इसे नियंत्रित रखना इसका उपचार कराने से कई गुना बेहतर विकल्प होता है. तो लीजिये मधुमेह रोग से सम्बंधित विस्तृत उपयोगी और हितकारी जानकारी प्रस्तुत है :-

वर्तमान समय में तथाकथित प्रगतिशीलता और आधुनिकता के नाम पर जैसा प्रदूषित, अनुचित और अप्राकृतिक ढंग का आहार यानी खान-पान और विहार यानी रहन-सहन किया जाता है , जैसा आचार यानी आचरण (व्यवहार) और विचार यानी मनोवृति को धारण किया जा रहा है उसके फलस्वरूप कई प्रकार की बीमारियां मनुष्यों को हो रही हैं, बढ़ रही हैं और फ़ैल रही हैं. ऐसी ही तेज़ी से बढ़ने वाली एक बीमारी है मधुमेह यानी डायबिटीज. मधुमेह की चपेट में हर उस व्यक्ति के आने की सम्भावना रहती है जो श्रमजीवी नहीं है, परिश्रम नहीं करता, व्यायाम नहीं करता, खूब साधन संपन्न है, आराम की ज़िन्दगी जीता है, खूब खाता-पिता है, मोटा-ताज़ा है, इसलिए यह बीमारी सम्पन्नता की प्रतीक बन गयी है. हालाँकि कुछ अन्य कारणों से यह दुबले-पतले लोगों को भी हो सकती है. मधुमेह रोग से ग्रस्त हो जाने पर इससे छुटकारा बहुत मुश्किल से मिलता है. हाँ इसे नियंत्रित किया जाता है और मधुमेह के मामले में इसका नियंत्रण ही इसका इलाज होता है. दरअसल रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ा हुआ रहना ही इससे उत्पन्न होने वाले विभिन्न रोग तथा शारीरिक नुक्सान का कारण होता है अतः यदि इसे नियंत्रित रखा जाए तो व्यक्ति डायबिटिक होते हुए भी अपनी पूरी आयु बिना किसी समस्या के जी सकता है. इसलिए मधुमेह से सम्बंधित आवश्यक जानकारी का पता होना बहुत जरुरी होता है. इसी उद्देश्य से मधुमेह का परिचय, लक्षण, कारण तथा आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा मधुमेह के उपचार सम्बन्धी उपयोगी विवरण Biovatica .Com द्वारा यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है -

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) के अनुसार विश्व के एक चौथाई मधुमेह के रोगी हमारे देश भारत में हैं. और हमारे देशवासियों की असंयमित जीवनशैली और जागरूकता के अभाव को देखते हुए यह कहा जा सकता है की आने वाले समय में भारत मधुमेह के रोगियों की राजधानी बन जाएगा. सबसे भयावह बात यह है की इस रोग के रोगियों में औषधियों एवं इन्सुलिन हार्मोन के प्रति प्रतिरोध (resistance ) होना शुरू हो गया है और यदि समय से हम नहीं चेते तो भारतवर्ष में मधुमेह एवं इसके उपद्रव स्वरुप उत्पन्न होने वाले अनेक असाध्य रोगों के आंकड़े बहुत चौंकाने वाले होंगे जैसे रीनल फेलियर , ह्रदय रोग, न्यूरोपैथी, नेत्र रोग (अंधत्व ), लकवा, यकृत के रोग, गेंग्रीन, रक्तवाहिनियों के अवरुद्ध होने से होने वाले रोग आदि, हालाँकि सभी चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक एवं वैज्ञानिक इसके इलाज और रोकथाम के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं परन्तु जनमानस में इस रोग के प्रति जागरूकता पैदा किये बिना इस रोग पर नियंत्रण पाना बहुत कठिन है. तो लीजिये मधुमेह रोग से आपका सम्पूर्ण परिचय करवाते हैं.

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की भाषा में मधुमेह को डायबिटीज मेलिटस (diabetes mellitus ) कहते हैं. डायबिटीज का मतलब होता है प्रवाह होना (passing through ) , मेह होना और मेलिटस यानी मधु जैसा, मीठा. आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह रोग एक प्रकार का प्रमेह रोग है जो २० प्रकार के होते हैं. मधुमेह दो प्रकार से उत्पन्न होता है जैसा की अष्टांग ह्रदय में लिखा है -
"मधुमेहो मधु समं, जायन्ते स कील द्विधा,
क्रुद्धे धातुक्षयादवायो दोषावृत्त पाठस्थवा "
अर्थात धातुक्षय के कारण वायु के कुपित होने से एक प्रकार का और दोषों से मार्ग रुकने के कारण वायु के प्रकोप से उत्पन्न होने वाला दूसरे प्रकार का मधुमेह रोग होता है जिसमे रोगी मधु के सामान मूत्र प्रवाहित करता है. हम यहाँ वातज प्रमेह के इसी एक प्रकार मधुमेह (diabetes mellitus ) के विषय में चर्चा कर रहे हैं. मधुमेह रोग को थोड़ा आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी समझ लिया जाए.

अग्नाशय (pancreas ) शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जो पाचक रसों का स्त्राव करने के साथ-साथ अन्तःस्त्रावी ग्रंथि की तरह भी काम करता है. इसमें पायी जाने वाली बीता कोशिकाओं से इन्सुलिन नामक हार्मोन का स्त्राव होता है जो मुख्यतः आहार से प्राप्त कार्बोहाइड्रेट का चयापचय करता है. आहार में जो भी कार्बोहाइड्रेट्स लिए जाते हैं पाचन के बाद वे अंततः अपनी मूल इकाई ग्लूकोस (glucose ) में परिवर्तित हो जाते हैं. शरीर में ग्लूकोस की तीन गतियाँ होती हैं. पहली - हमारे शरीर की कोशिकाओं के क्रिया-कलापों के लिए ग्लूकोस ईंधन होता है यानी कोशिकाएं अपने कार्यों को करने के लिए इससे ऊर्जा बनाती है. दूसरी - ग्लूकोस की अतिरिक्त मात्रा शेष रहने पर यह ग्लायकोजन (glycogen ) में बदल कर यकृत में संचित हो जाता है और तीसरी - यदि इसके बाद भी रक्त में शर्करा का स्तर अधिक रहे तो ग्लूकोस वसा में बदल कर संचित हो जाता है जो आवश्यकता पड़ने पर पुनः ग्लूकोस में बदल कर ऊर्जा प्रदान करता है. ग्लूकोस का उपयोग करने वाली इन तीनों प्रक्रियाओं के घटित होने के लिए अग्नाशय द्वारा स्त्रावित इन्सुलिन हार्मोन की उपस्थिति आवश्यक होती है. प्रत्येक कोशिका की सतह पर इस हार्मोन के प्रति संवेदनशील ग्राही क्षेत्र होते हैं जिनसे जुड़ कर, इन्सुलिन ग्लूकोस को कोशिका के अंदर पहुंचता है. यदि अग्नाशय से इन्सुलिन का पर्याप्त मात्रा में स्त्राव नहीं हो या कोशिकाओं के इन्सुलिन के प्रतिग्राही क्षेत्रों की संवेदनशीलता कम हो जाए या ये दोनों स्थितियां एक साथ उपस्थित हो जाएँ तो रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने लगता है और मधुमेह रोग की उत्पत्ति होती है क्यूंकि ऐसी स्थिति में न तो कोशिकाएं सही ढंग से ग्लूकोस का उपयोग कर पाती हैं, न ग्लूकोस, ग्लाइकोजेन के रूप में, यकृत में संगृहीत हो पाटा है और न ही वसा में परिवर्तित हो कर संचित हो पाता है. जब रक्त में ग्लूकोस का स्तर 180mg /dl से अधिक हो जाता है तब यह मूत्र में उत्सर्जित होने लगता है.

मधुमेह रोग मुख्यतः दो प्रकार का होता है. पहले प्रकार में अग्नाशय की विशिष्ट कोशिकाएं (beta cells ) या तो बिलकुल ही इन्सुलिन नहीं बनाती हैं या बनती भी हैं तो बहुत कम मात्रा में बनाती हैं. इसे टाइप १ या इन्सुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस (IDDM ) कहते हैं. इस प्रकार का मधुमेह ५ से १० प्रतिशत लोगों में पाया जाता है. यह प्रकार कम आयु (३० वर्ष से कम) में आरम्भ हो जाता है और वंशानुगत प्रभाव, संक्रमण या रोग-प्रतिरोधक तंत्र की विकृति (autoimmunity ) से होने वाली अग्नाशय की क्षति से उत्पन्न होता है. दूसरे प्रकार में इन्सुलिन के ग्राही क्षेत्रों की इसके प्रति संवेदनशीलता कम हो जाने ( insulin resistance ) से यह प्रभावी नहीं रहता. इसे टाइप २ या नॉन इन्सुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस (NIDDM ) कहते हैं. इसमें इन्सुलिन की अधिक मात्रा में मांग का दबाव अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं पर पड़ता है और धीरे धीरे उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है और परिणामस्वरूप इन्सुलिन की मात्रा भी कम होने लगती है. चूँकि लगभग 90 % रोगियों में यह प्रकार पाया जाता है अतः हम मधुमेह के इस प्रकार पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

मधुमेह के कारण

मधुमेह रोग तब उत्पन्न होता है जब आहार से अवशोषित शर्करा कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाती हैं और रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने लगता है. इस विकृति के पीछे इन्सुलिन हार्मोन का कम होना या बिलकुल ही न होना, इन्सुलिन के ग्राही क्षेत्र की विकृति या इन्सुलिन का निष्प्रभावी होना (insulin resistance ) आदि कारण होते हैं.
(१) अनुवांशिक प्रभाव - जिन लोगों के परिवार में बुजुर्गों को ये रोग हो रहा हो या माता-पिता व् भाई बहन इस रोग से पीड़ित हों उनकी इस रोग से ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है.
(२) खान-पान - कार्बोहाइड्रेट व् वसा युक्त खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में निरंतर सेवन करने से मधुमेह रोग होता है जैसे - गुड़ व् गुड़ से बनी हुई चीजें दूध व् दूध से बनी हुई चीजें, मिठाइयां, मक्खन, घी, तेल, परांठे-पूरी, नया अन्न, आलू, चावल, शकरकंद, फास्ट फ़ूड, डिब्बा-बंद भोजन, ब्रेड, कोल्ड-ड्रिंक्स, आइस-क्रीम, पचने में भारी व् वायुकारक पदार्थ, मांसाहार, देश-काल प्रकृति विरुद्ध आहार, शराब, सिगरेट आदि. यह देखा गया है की शाकाहार करने की अपेक्षा मांस और मदिरा का सेवन करने वाले व्यक्तियों को मधुमेह रोग ज्यादातर हो जाता है. इसलिए मांसाहारी बहुल देशों में मधुमेह रोग ज्यादा पाया जाता है. हमारे देश में भी जब से मांस-मदिरा का प्रयोग बढ़ा है तब से मधुमेह के रोगी भी बढे हैं.
(३) मोटापा - आज के दौर में ये एक अहम् कारण बनता जा रहा है. हालांकि यह जरुरी नहीं है की मोटापा होने से मधुमेह रोग हो ही जाए क्यूंकि दुबले-पतले व्यक्ति भी मधुमेह के शिकार हो जाते हैं. अनुचित दिनचर्या व् जीवनशैली जैसे निष्क्रिय दिनचर्या, हर समय गद्दे कुर्सी पर बैठे रहना, अधिक सोना, दिन में सोना और सुबह देर तक सोये रहना, अधिक मात्रा में और अधिक कैलोरी-युक्त आहार लेना आदि कारणों से मोटापा बढ़ता है. मधुमेह की सम्भावना तब भी बढ़ती है जब मानसिक श्रम तो बहुत होता है पर शारीरिक श्रम कम या बिलकुल नहीं होता है. कामधंदे की चिंता और तनाव भी मधुमेह रोग का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है.

(४) मानसिक कारण - तनाव, ईर्ष्या, क्रोध, द्वेष, शोक, अनिद्रा आदि कारणों से वात कुपित हो मधुमेह रोग की उत्पत्ति करता है. दरअसल इन मानसिक कारणों से शरीर का अनुकम्पीय तंत्र (sympathetic nervous system ) उद्दीप्त हो अधिवृक्क ग्रंथि (adrenal gland ) को अति सक्रीय करता है जिससे शरीर का चयापचय बिगड़ जाता है और मधुमेह रोग की उत्पत्ति होती है.

(५) अन्य कारण - किसी भी बाहरी कारण जैसे संक्रमण या चोट लगना , से अग्नाशय में विकृति आ जाती है जिससे उसका इन्सुलिन बनाने का काम या तो कम हो जाता है या बंद हो जाता है पियूष ग्रंथि या थायराइड ग्रंथि के विकार भी कभी कभी मधुमेह रोग की उत्पत्ति का कारण होते हैं.

मधुमेह के लक्षण

मधुमेह रोग एक दम से नहीं होता की रात को अच्छे भले सोये और सुबह उठे तो पता चला की डायबिटिक हो गए हैं. शरीर में मधुमेह रोग के स्थापित होने से पहले कुछ लक्षण उत्पन्न होते हैं - जैसे अधिक मात्रा या आवृत्ति में (बार बार ) पेशाब होना खासतर रात में पेशाब लगने के कारण नींद खुल जाना, अधिक प्यास व् भूख लगना, मुंह सुखना, कमजोरी व् थकावट महसूस होना, श्रम वाले काम न कर पाना, वज़न गिरना, बार बार संक्रमण (फोड़े-फुंसी ) होना और घावों का जल्दी ठीक ना होना , गुप्तांग में खुजली होना आदि लक्षण इस बात की ओर इशारा करते हैं की रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ गया है. जांच कराने पर, सुबह खाली पेट ब्लड शुगर का 120mg /dl से ऊपर होना तथा भोजन के २ घंटे बाद 140mg /dl से ऊपर होना मधुमेह रोग की पुष्टि करता है. Hb Ac का रक्त में सामान्य स्तर 3 .5 से 5 .7 तक होता है. यदि इन लक्षणों पर ध्यान देकर रोग नियंत्रण के उपयुक्त उपाय नहीं किये जाते हैं तो रक्त में शर्करा का निरंतर बढ़ा हुआ स्तर शरीर की तंत्रिकाओं (neuropathy ) , रक्तवाहिनियों, गुर्दोँ (nephropathy ), आँखों (retinopathy ) आदि को नुक्सान पहुंचाता रहता है. ह्रदय रोग उत्पन्न करने में भी मधुमेह की अहम् भूमिका होती है.

मधुमेह का उपचार

मधुमेह एक ऐसा रोग है जो ज्यादातर आहार-विहार में लापरवाही करने से होता है और समय रहते सतर्क हो कर आहार-विहार में उचित सुधार न किया जाए तो यह रोग असाध्य स्थिति में पहुँच जाता है. इसलिए हमने मधुमेह का परिचय, कारण, लक्षण आदि पर इतनी विस्तार से चर्चा की है ताकि जनसाधारण इसके प्रति जागरूक हो सके और पूर्व लक्षण उत्पन्न होते हो उचित उपायों द्वारा रोग को नियंत्रित कर सके. मधुमेह बीमारी के मामले में, ध्यान में रखने योग्य बात यह है की इसको नियंत्रित या नष्ट करने के लिए पथ्य-अपथ्य का पालन करना औषधि-सेवन से भी अधिक महत्त्व रखता है.
यदि इस रोग के लक्षण उत्पन्न होने पर रक्त और मूत्र की जांच द्वारा मधुमेह रोग की पुष्टि हो जाती है तो औषधि सेवन के साथ साथ आहार-विहार का प्रबंधन करना भी जरुरी होता है ताकि रक्त में शर्करा का स्तर मानक स्तर पर बना रहे और केवल मधुमेह रोग ही नियंत्रित न रहे बल्कि इसके उपद्रवों स्वरुप होने वाले कई रोगों से बचा जा सके. इसमें किसी भी तरह का गलत उपचार हानिकारक सिद्ध हो सकता है, जैसे कई लोग किसी के कहने पर नीम, अफीम, एवं अनेक तरह की भस्मों का प्रयोग करने लग जाते हैं. हो सकता है की कुछ मेदस्वी व्यक्तियों को नीम आदि कटु कषाय द्रव्यों के प्रयोग से तात्कालिक लाभ मिल जाता हो परन्तु कालांतर में यह हानि ही करता है और अनेक दीर्घकालिक रोगों की उत्पत्ति हो जाती है.

मधुमेह में आहार-विहार

सर्वप्रथम हमारी जीवनशैली और खानपान ऐसा होना चाहिए की मधुमेह क्या कोई भी रोग न हो. हमें इस भरोसे में नहीं रहना चाहिए की किसी भी बीमारी का इलाज हो जाएगा. रोग हो जाने के बाद दवाइयां भी लेनी पड़ती हैं और पथ्य परहेज़ बहुत सख्ती से रखना पड़ता है जिससे श्री की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं और थकान, कामेच्छा में कमी जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं तथा जीवन नीरस सा लगने लगता है. इसकी बजाय छोटी छोटी चीजों पर ध्यान दिया जाए तथा कोशिकीय स्तर पर पोषण एवं व्यायाम को विशेष महत्त्व दिया जाए तो मधुमेह जैसी घातक बीमारी से बचा जा सकता है.
मधुमेह रोग से ग्रसित व्यक्ति मोटे एवं पतले (दुर्बल) दोनों तरह के होते हैं . इन दोनों को हो अपना वज़न मानक स्तर पर लाना पड़ता है. मोटे व्यक्ति को आहार-विहार एवं औषधि के सेवन से वज़न कम करना होता है तथा दुर्बल व्यक्ति को आहार-विहार तथा औषधि के सेवन से वज़न बढ़ाना होता है देश, काल एवं अपनी प्रकृति के अनुसार आहार-विहार करते हुए दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या के नियमों का पालन करना चाहिए. आहार में जौ, चना, गेहूं, बाजरा, लाल चावल (सभी चोकर युक्त ) , लौकी, तौरई, टिंडे, परवल, मेथी, ग्वारपाठा, सरसों, पालक, अंकुरित छिलके वाली दालें, हरी सब्ज़ियां, सलाद, मूली-गाजर, पत्तागोभी, सहिजन की फली, ग्वारफली, पुदीना, लहसुन, प्याज, भिंडी, करेला, बैंगन, टमाटर, खीरा, मूंगफली का तेल, सरसों का तेल, अलसी, ताज़ी छांछ, दही, मुंग, चना, मसूर, काला चना, राजमा, ताजे फल आदि को अपने स्वाद के अनुसार अलग-अलग भोजन बनाकर कम-कम मात्रा में चार भागों में बाँट लें. सुबह का नाश्ता २०-२५ प्रतिशत (८ से ९ ), दोपहर २५-३० (१२ से १), शाम १५-२० प्रतिशत (४ से ५ बजे ), तथा रात्रि ९ से १० बजे के बिच शेष बचा भोजन लें.

आहार में करीब २०-२५ प्रतिशत प्रोटीन (दालें, दूध आदि ), १५-२० प्रतिशत वसा (अलसी का तेल, सूरजमुखी का तेल, जंगल में चरने वाली गाय का घी आदि ) तथा कम कैलोरी वाले एवं अधिक रेशे वाले कार्बोहाइड्रेट्स ( complex carbohydrates ) को ५० प्रतिशत शामिल करना चाहिए. मांस, दूध, घी , मक्खन, तली हुई चीजें आदि का प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में करना चाहिए. भोजन में मीठे पदार्थ, शक्कर, मीठे फल, मीठी चाय, मीठा पेय, मीठा दूध, चावल, आलू आदि का सेवन बंद कर देना चाहिए.

मधुमेह में व्यायाम

मधुमेह रोग में व्यायाम का विशेष महत्त्व है. व्यायाम से अग्नाशय की कोशिकाओं को स्वास्थ्य रखने , इन्सुलिन उत्पादन एवं स्त्रवण में अवरोध को दूर करने , इन्सुलिन रेजिस्टेंस को कम करने तथा कोशिकाओं की सतह पर स्थित ग्राही क्षेत्रों (receptors) को सक्रीय करने में मदद मिलती है. प्रातः काल तेज़ चाल से कम से कम ४५ मिनट प्रतिदिन घूमना बहुत लाभदायक होता है. इसके अलावा हलकी दौड़, विभिन्न प्रकार के आसान व् प्राणायाम भी किये जा सकते हैं. पैदल चलना, सीढ़ियां चढ़ना- उतरना, साइकिल चलाना आदि को रोजमर्रा के कामों में शामिल करना चाहिए. किसी प्रकार के खेल का नियमित अभ्यास या तैरना भी बहुत लाभदायक होता है. इसके साथ-साथ मधुमेह के रोगी को हमेशा भरपूर नींद लेना चाहिए, तनाव-चिंता को दूर रखते हुए प्रसन्नचित्त रहना चाहिए, सोच-विचार को सकारात्मक रखना चाहिए, मधुर संगीत सुनना चाहिए, तथा सकारात्मक पुस्तकें पढ़ना चाहिए.

मधुमेह चिकित्सा

जैसा हमने पहले कहा की मधुमेह के दो तरह के रोगी होते हैं :- मोटे और कमज़ोर. चिकत्सा करते समय दोनों तरह के रोगियों का ध्यान रखना पड़ता है. यदि मोटे व्यक्ति आहार और औषधियों में कटु- कषाय रसों का प्रयोग करते हैं तो लाभ मिलता है वहीँ दुर्बल व्यक्तियों को इससे हानि होती है. हम यहां जो चिकित्सा बता रहे हैं वह सामान्यतः सभी तरह के मधुमेह रोगियों को लाभ पहुंचाती है.
१. घटक द्रव्य :- गिलोय, अर्जुन की छल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, अश्वगंधा, मेथी, हल्दी, दारुहल्दी, गोखरू - इन सभी को सामान मात्रा में लेकर घनसत्व विधि से घन सत्व बना लें या चूर्ण बना लें.
सेवन विधि - घन सत्व २ ग्राम या चूर्ण ५-६ ग्राम, सुबह भूखे पेट व् शाम को भोजन से एक घंटा पहले सादे जल से ले लें. यदि व्यक्ति ज्यादा कमज़ोर हो तो इस योग में अश्वगंधा की मात्रा दुगुनी कर लें. पित्त प्रकृति वाले तथा स्त्री रोगी इस योग में सामान मात्रा में लाल चन्दन और मिला लें. तथा वात प्रकृति का रोगी अजवाइन मिला लें. स्नायु दौर्बल्य एवं कमजोर व्यक्ति शीत ऋतू में चिकित्सक की देख रेख में निम्न प्रयोग कर सकते हैं :-
घन सत्व ६० ग्राम, शिलाजित्वादि लौह ५ ग्राम , त्रिवंग भस्म ५ ग्राम, वसंत कुसुमाकर रस ३ ग्राम, गिलोय सत्व १० ग्राम, तथा प्रवाल पिष्टी ५ ग्राम, - इन सभी द्रव्यों को अच्छी तरह से खरल कर के ६० पुड़िया बना लें. एक एक पुड़िया सुबह भूखे पेट और शाम को भोजन से एक घंटा पहले लें. इस योग को अन्य चिकित्सा पद्धति के साथ लिया जाए तो मधुमेह के उपद्रव कम से कम रहते हैं.

2) घटक द्रव्य - मेथी, त्रिफला, गिलोय, गुड़मार, विजयसार, बेलपत्र, तेजपत्र, दालचीनी, - इन सभी द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें.
सेवन विधि - ५-५ ग्राम चूर्ण सुबह शाम खाली पेट लें व् साथ में चन्द्रप्रभा वटी की १-१ गोली भी सुबह शाम लें.

३) घटक द्रव्य - त्रिफला, खस, चन्दन, अगर, दालचीनी, छोटी इलायची, गिलोय, - इन सबका चूर्ण बना लें और इसकी एक-एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम लें.
इस प्रयोग को स्वस्थ व्यक्ति भी कर सकता है , विशेषकर जिसके परिवार में मधुमेह रोग का इतिहास हो. इसके नियमित सेवन से मधुमेह रोग होने की संभावना नहीं रहती है.

मधुमेह में परहेज

शक्कर, घी, मक्खन, मिठाई, गरिष्ठ आहार, आइस-क्रीम, फ़ास्ट फ़ूड, पेस्ट्री-केक , कोल्ड ड्रिंक्स, शराब, चॉकलेट, पापड, पूरी, मालपुआ, नमक, धूम्रपान, शराब, अचार, डिब्बा -बंद खाद्य पदार्थ, आदि का सेवन कतई न करें. तनाव, चिंता और दिन में सोना आदि न करें.

४० वर्ष की उम्र के बाद ३ माह में एक बार रक्त की जांच कराते रहना चाहिए तथा जो इस रोग से ग्रस्त हों उन्हें प्रतिमाह रक्त और मूत्र की जांच करते रहना चाहिए.

मधुमेह के साथ जीने का सही ढंग
madhumeh

यूँ तो प्रत्येक मनुष्य को शरीर की चयापचय पद्धति (metabolism ) के विषय में पूरी जानकारी होनी ही चाहिए लेकिन मधुमेह से ग्रस्त हो जाने वाले रोगी के लिए तो यह जानना अपरिहार्य रूप से जरुरी है की शरीर में रक्त-शर्करा का नियंत्रण किस प्रकार से होता है, अग्नाशय से स्त्रावित होने वाला इन्सुलिन हार्मोन का क्या कार्य और प्रभाव है, उसके लिए हितकारी आहार-विहार क्या हैं, आदि आदि. इस बारे में कुछ और हितकारी निर्देश यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं.

(१) जहाँ तक हो सके वहां तक, मधुमेह के होने की जानकारी मिलते ही, पूरी सतर्कता से उचित आहार-विहार करके, यह कोशिश करना चाहिए की रक्त-शर्करा नियंत्रित और सामान्य मात्रा में बनी रहे ताकि ऐसी नौबत न आ जाए की इन्सुलिन के इंजेक्शन लगाना जरुरी हो जाए क्यूंकि एक बार इन्सुलिन का सेवन करना पड़ जाए तो फिर आजीवन इन्सुलिन से पीछा नहीं छूटता.
(२) रोग की स्थिति के गुलाम न बने रहें बल्कि इसे अपने नियंत्रण में रखें. यह कोई मुश्किल काम नहीं है बशर्ते आपका संकल्प सुदृढ़ हो क्यूंकि ऐसे काम बहुत थोड़े हैं जो मधुमेह का रोगी नहीं कर सकता या उसे नहीं करने चाहिए.
(३) यदि मधुमेह का रोगी इन्सुलिन पर हो तो भूखे पेट उसे कार ड्राइविंग नहीं करना चाहिए. कोई भारी परिश्रम का काम लगातार नहीं करना चाहिए और भोजन निश्चित समय पर करने में बिलकुल भूल-चूक नहीं करना चाहिए.
(४) यदि मधुमेह के रोगी को बार बार शर्करा के कम होने (Hypoglycemia ) की शिकायत होती हो, जो की इन्सुलिन लेने वाले को हो सकती है, तो ऐसे रोगी को एक कार्ड, कोट के कॉलर पर, स्टीच कर रखना चाहिए जिस पर लिखा हो - "मैं डायबिटिक हूँ" . इसी के नीचे जरुरी हिदायतें लिख दें ताकि ऐसा न हो की रोगी शर्करा की कमी के कारण सड़क पर गिर पड़े और लोग समझें की शराबी है जबकि ऐसे वक़्त में रोगी को थोड़ा सा ग्लूकोस खिला देना जरुरी होता है.
(५) मधुमेह के पुराने रोगी के पैरों के तलुओं में , पर्याप्त रक्त संचार न होने तथा तंत्रिकाओं की विकृति के कारण, कुछ तकलीफें हो जाती हैं जैसे एड़ी फटना, अँगुलियों में चिराव होना, चाइ (corn ) होना आदि इसलिए रोज़ धुले हुए कपडे के मोज़े (नायलोन के लिए ) और नरम जूते पहनना हितकारी होता है. यदि पैरों के तलुओं में कोई बीमारी हो तो तुरंत चिकित्सक से सलाह ले.
(६) मधुमेह रोगी को अपना वज़न प्रति माह तोलते रहना चाहिए. यदि वज़न में कोई विशेष परिवर्तन हो तो तुरंत चिकित्सक से सलाह लें. प्रति माह अपनी जांच कराते रहें. चिकित्सक की सलाह पर सख्ती से अमल करें.
(७) मधुमेह रोग पर काम करने और रोगियों को उचित सलाह देने वाली किसी समाजसेवी संस्था से संपर्क रखें और समय-समय पर परामर्श लेते रहें.

मधुमेह से बचने के उपाय

जिनके परिवार में मधुमेह के रोगी होने का इतिहास हो उनके बच्चों को बचपन से ही मोटापे के प्रति सतर्क रहना चाहिए. ऐसे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए जिनके सेवन से मोटापा बढ़ता हो. यदि मोटापा न हो तो मधुमेह रोग होने की संभावना बहुत कम रहती है. ऐसे बच्चों को, जिनके पिता, ताऊ, चाचा, दादा आदि को मधुमेह रहा हो उन्हें बचपन से ही मधुमेह रोग से बचने के लिए सभी जरुरी बातों की जानकारी, परिवार के लोगों को, दे देनी चाहिए और उनके आहार-विहार पर सख्ती से नज़र रख कर हितकारी आहार-विहार ही करवाना चाहिए. ऐसे बच्चे पनीर, चाय, टमाटर, निम्बू, छाछ, ताज़ा दही, मूली, पत्ता गोभी, गाजर, शलजम, पत्तेदार सब्ज़ियां, छिलके वाली मूंग की दाल, चना, जौ आदि का सेवन मजे से कर सकते हैं. गेहूं, दूध, घी, मक्खन, आम, केला, आलू का सेवन कम मात्रा में कर सकते हैं. वसा, कार्बोहाइड्रेट, तथा आजकल के खाद्य पदार्थ जिन्हे फास्ट फ़ूड कहा जाता है, का सेवन भी कम मात्रा में करना चाहिए. भोजन की मात्रा भूख से थोड़ी कम रखें और प्रत्येक कौर खूब चबा कर खाने की आदत दालें. खेल-कूद में खूब हिस्सा लें, सुबह जल्दी उठ कर दौड़ लगाया करें, योगगासन व् व्यायाम किया करें. इतना सब करेंगे तो बच्चे मधुमेह के पैतृक प्रभाव से बचे रह सकेंगे. मधुमेह रोग से जितना बचाव कर सकें उतना करना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है.