kshay rog in Ayurveda in hindi, आयुर्वेद में क्षय रोग (टीबी)

kshay rog overview by Ayurveda in hindi, क्षय रोग (टीबी) का आयुर्वेदिक विश्लेषण.

kshay rog in Ayurveda in hindi, आयुर्वेद में क्षय रोग (टीबी)

kshay rog overview by Ayurveda in hindi, क्षय रोग (टीबी) का आयुर्वेदिक विश्लेषण.

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kshay rog

kshay rog, क्षय रोग (टीबी)

जैसा की क्षय रोग के नाम से ही प्रकट है, पूरे शरीर का या किसी भी अंग का क्षय होना, क्षय रोग (टीबी ) होता है. यह रोग हड्डियों, हड्डी के जोड़ों, आँतों और फेफड़ों को प्रभावित करके उनको क्षीण करने लगता है और सही चिकित्सा न की जाये तो क्षीण होते होते उस अंग का क्षय हो जाता है. इसलिए इसे क्षय रोग (टीबी) कहते हैं. इस आर्टिकल में हम फेफड़ों के क्षय रोग के बारे में विवरण दे रहे हैं क्यूंकि सब प्रकार के क्षय रोगों में फेफड़ों का क्षय रोग सबसे ज्यादा होता पाया जाता है.
क्षय रोग की उत्पत्ति 'मइक्रोबक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस ' नामक कीटाणु के आक्रमण से होती है. इस कीटाणु का आक्रमण विशेष कर उन व्यक्तियों पर ज्यादा होता है जो अत्यधिक व्यस्त और कार्य के दबावसे त्रस्त रहते हैं . क्षय रोग शरीर के उन अंगों पर ज्यादा प्रभाव डालता है जहाँ ऑक्सीजेन का दबाव अधिक होता है. चूँकि ऑक्सीजेन का दबाव फेफड़ों में अधिक होता है इसलिए इस रोग का आक्रमण फेफड़ों पर जल्दी और ज्यादातर होता है और सामान्यतः श्वास नलिका के माध्यम से फेफड़ों के शीर्ष पर होता है.

क्षय रोग (टीबी) एक संक्रामक रोग है इसलिए क्षय रोग के रोगी के संपर्क में रहने वाले को भी ये रोग हो सकता है. इस रोग के कीटाणु बलगम में रहते हैं यद्यपि दस माइक्रोमीटर से बड़े आकर के कीटाणु , सांस लेते समय , श्वास नलिका में मौजूद तरल द्वारा रोक लिए जाते हैं किन्तु इससे छोटे आकर के कीटाणु नहीं रोक पाने के कारण संपर्क में रहने वाले को प्रभावित कर देते हैं. संक्रमण के अलावा ये रोग कुपोषण और गंदे स्थान में रहना, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होना, स्त्री का बार बार गर्भ धारण करना, अत्यधिक मानसिक अवसाद, तीव्र चिंता और भरी तनाव होना, खदान, पत्थर या सीमेंट के कारखानों में काम करना आदि कारणों से भी हो जाता है.

क्षय रोग के आरंभिक समय में कोई बाहरी लक्षण प्रकट नहीं होता इसलिए इस रोग से ग्रस्त होने वाले को शुरू शुरू में यह पता ही नहीं चलता की वह क्षय रोग से संक्रमित हो गया है. लगभग एक माह बीत जाने पर रोग के प्रारंभिक लक्षण प्रकट होते हैं जैसे ज्वर होना, थकन मालूम देना और खांसी चलना आदि. इसके बाद धीरे धीरे इन लक्षणों का बढ़ना. लगातार खांसी चलना, शरीर का वज़न घटने लग्न, ज्वर बना रहना व् शरीर का तापमान बढ़ना , रात को सोते समय पसीना आना, थकावट व् कमजोरी का एहसास बढ़ते जाना, स्वाभाव में चिड़चिड़ाओं, सीने में दर्द होना, चेहरा कांतिहीन होते जाना, शरीर का दुबलापन बढ़ना और चेहरा कुरूप होना आदि लक्षण प्रकट होते जाते हैं. उचित चिकित्सा न होने पर धीरे धीरे खांसी में खून आने लगता है फिर खून की मात्रा बढ़ जाती है , मुंह से खून आने लगता है और अंत में रोगी की मृत्यु हो जाती है.

क्षय रोग (टीबी) के मरीज की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और भूख कम हो जाती है. इससे शरीर का वज़न कम होने लगता है. शुरू में रोगी को सुपाच्य हल्का और पोषक तत्व युक्त आहार देनाचाहिए . रोग पुराना पड़ जाने पर शरीर बहुत दुबला और कमजोर हो जाता है और देखते ही यह ख्याल पैदा होता है की रोगी क्षय रोग (टीबी) का मरीज है. ऐसी स्थिति में चिकित्सक की सलाह से पौष्टिक सुपाच्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए. ऐसे पदार्थों में गेहूं, मुंग, घी, चना, मक्खन, पका केला, खजूर, किशमिश, आंवला आदि पदार्थों के नाम उल्लेखनीय हैं किन्तु इलाज के दौरान पान, उड़द की दाल , तले तीखे और तेज मिर्च मसालेदार आदि हींग और सेम का सेवन कतई नहीं करना चाहिए . क्षय रोग (टीबी) के रोगी के साथ निकट नामपरक न रखें . क्षय (टीबी) रोगी के बलगम को ज़मीन में गाड़ देना चाहिए, उसके बर्तन व् कपड़ों को, खाने के बर्तनों और पहने हुए कपड़ों आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. रोगी को साफ़, हवा और रौशनी वाले स्थान पर खुले वातावरण में रहनाचाहिए.